वक़्त का सफ़र ये वक़्त का दौर हैं ऐसे ही थोड़ी जायेगा कुछ देकर तो बहुत कुछ लेकर जायेगा - भूमि जोशी नही जानते की कब हमने वक़्त के साथ सफ़र शुरू कर दिया। सफ़र की शुरुआत जब हुई तब सोचा ही नही था की इतना लम्बा सफ़र करना करना होगा! न जाने कब हम जनवरी - दिसम्बर की गिनती में पड़े और बिच में से कुछ बीतता रहा। न जाने कितने दिसम्बर बीत गये हैं फ़िर भी आज एक और दिसम्बर बीतने को हैं। वैसे तो कुछ भी बदलता नही हैं सिवा तारीखों के। फिर भी जहन को जनजोड़ के रख देता हैं बिता हुआ ए वक़्त। दर्द होता हैं वेसा ही जैसे कोई अपना अकेला छोड़कर जा चूका हो क्योंकि वक़्त लौटता नही हैं सिर्फ़ बीतता हैं। हरसाल में एक उम्र बीतती हैं। हरसाल की तरह इस साल भी जिंदगी बहुत करीब से गई। कभी ऐसा लगा की मौत छूकर निकल गई। वक़्त का ये दौर जो कट चुका हैं वो ना ही वापस आ शकता हैं ना ही कदमों की रफ़्तार को आगे बढ़ा शकता हैं। न जाने क्यों पर आज भी उन बीते हुए लम्हों के साथ एक अटूट रिश्ता हैं जो सदियों बाद भी वेसा ही रहेगा। इस वक़्त ने हसाया हैं तो इस वक़्त के साथ आँखों से बूंदे गिरी भी बहुत हैं। इसी वक़्त ने शिखाया...
That's just the way I am.