वक़्त का सफ़र
ये वक़्त का दौर हैं ऐसे ही थोड़ी जायेगा
कुछ देकर तो बहुत कुछ लेकर जायेगा
- भूमि जोशी
कुछ देकर तो बहुत कुछ लेकर जायेगा
- भूमि जोशी
नही जानते की कब हमने वक़्त के साथ सफ़र शुरू कर दिया। सफ़र की शुरुआत जब हुई तब सोचा ही नही था की इतना लम्बा सफ़र करना करना होगा!
न जाने कब हम जनवरी - दिसम्बर की गिनती में पड़े और बिच में से कुछ बीतता रहा। न जाने कितने दिसम्बर बीत गये हैं फ़िर भी आज एक और दिसम्बर बीतने को हैं। वैसे तो कुछ भी बदलता नही हैं सिवा तारीखों के। फिर भी जहन को जनजोड़ के रख देता हैं बिता हुआ ए वक़्त। दर्द होता हैं वेसा ही जैसे कोई अपना अकेला छोड़कर जा चूका हो क्योंकि वक़्त लौटता नही हैं सिर्फ़ बीतता हैं।
हरसाल में एक उम्र बीतती हैं। हरसाल की तरह इस साल भी जिंदगी बहुत करीब से गई। कभी ऐसा लगा की मौत छूकर निकल गई। वक़्त का ये दौर जो कट चुका हैं वो ना ही वापस आ शकता हैं ना ही कदमों की रफ़्तार को आगे बढ़ा शकता हैं। न जाने क्यों पर आज भी उन बीते हुए लम्हों के साथ एक अटूट रिश्ता हैं जो सदियों बाद भी वेसा ही रहेगा।
इस वक़्त ने हसाया हैं तो इस वक़्त के साथ आँखों से बूंदे गिरी भी बहुत हैं। इसी वक़्त ने शिखाया की जिन लम्हों में जी भर के जिया जा शकता हैं उन लम्हों को परेशान होकर बर्बाद न किया जाये। इसने एक हाथ में कुछ दिया हैं तो दूसरे हाथ से छिना भी बहुत कुछ हैं।
इस वक़्त ने ऐसा भी दौर दिखाया हैं जो कभी सपने में भी सोचा न हो। कितना कुछ लेकर जाना चाहते थे दामन में पर सबकुछ बिखरा हुआ हैं एक तरफ और हम सबकुछ समेट ने में लगे हैं। सफ़र का भाग ही तो हैं रूह का काप जाना, अपने आपसे डर जाना, कुछ टुट जाना, कुछ छूट जाना, कुछ शौर सन्नाटे में और कुछ सन्नाटे शौर में तफ़दिल हो जाना।
बहुत कुछ ऐसा भी हैं जो अल्फाज़ बया नही कर शकते। अब भी दर्द साथ हैं, आँखों में नमी भी और चेहरे पे हसी भी। सफ़र की एक अजीब सी कशमकश हैं अपने आप को ढूंढ़ना और फिर जिंदगी को जानना। वक़्त ने ये दौर भी दिया जैसे की वो खुशियाँ देख ही नही शकता। कई हादसें भी हुए जिसने कई दिनों तक अल्फाज़ छिन भी लिए। तो सफ़र के इसी वक़्त ने शिखाया हैं की जितने से बेहतर जीना जरूरी हैं। इस सफ़र में क़दम लड़खड़ाये इसी वक़्त ने वक़्त पर सम्भाल भी लिया। क्यों शिकवा करे इस वक़्त से, जिसने ग़म के पल दिए उसने ही खुशियों के ख़जाने भी दिए। दुनिया के सामने खड़े होकर कुछ कर गुज़रने का होंसला भी इस वक़्त से ही तो मिला हैं।
कभी अपने वज़ूद से ज़्यादा दिया तो कभी अपना कुछ छीन भी लिया हैं। जब सोंचती हु तो लगता हैं की अब समझने लगी हु की कुछ बातों को समजा नही जा शकता। बिलकुल वैसे ही जैसे इस वक़्त की रफ़्तार को समजा नही जा शकता सिर्फ़ जिया जा शकता हैं वक़्त के साथ। वक़्त रास्तों का आगाज़ हैं। कभी भी जिंदगी में पड़ाव को मंज़िल मत समज लेना। मुक्कदर में चलना हैं तो चलते ही रहना है।
लोग मिलते रहेंगे, बिछड़ते रहेंगे लेकिन अपना तसव्वुर कभी मत बदलने देना। कभी लगता हैं की बहुत अच्छा होता जो वक़्त के दौर को रोका जा शकता पर क्या करे वक़्त हैं किसी के भी लिए वो रूकता कहा हैं ?
बहुत कुछ बदला हैं बदलते वक़्त के साथ इंसान भी और तैवर भी। साथ रहता तो सिर्फ़ वक़्त, बिताए हुए लम्हें, शिखा हुआ सबख और यादें। कभी कबार तो यादें साथ रखकर इंसान को भूल जाते हैं। किसीको भी वक़्त किसी भी वक़्त बदल शकता हैं। अपने पराये की परख भी तो ये वक़्त ही तो देता हैं।
कितनो को जुकाया हैं तो कितनों के सामने अदब से शर को झुकाया भी तो हैं। एक कहानी के किरदार की तरह वक़्त के साथ बीते जा रहे हैं। कभी अपने आप से रूठ जाते हैं और कभी वक़्त हमसे रूठ जाता हैं। दोनों अपनी अपनी बात की अकड़ लिये बैठे हैं। मंज़िल अब भी दूर हैं पर ये वक़्त की दौड़ बहुत तेज होती जा रही हैं।
वक़्त ने वक़्त के साथ जीने का सलीका शिखाया हैं। सबकुछ जीतकर हारने से बेहतर हैं हार कर सबको जीता जाये। वक़्त ने दिखाया हैं जहन जिन्दा तो रहता हैं लेकिन कभी कबार दम तोड़ चूका होता हैं। भले ही उम्र छोटी रही हो पर वक़्त तज़ुर्बे उम्र के हिसाब से नही देता। शिखा हैं की सबकुछ मुमकिन नही पर कुछ भी मुमकिन नही ऐसा तो नही हैं। कई बार सिर्फ़ एक ही ज़िद की ख़ातिर कितना कुछ गवाया भी हैं बचपना था, आज भी हैं लेकिन बचपन वाला वक़्त नही हैं जहा चेहरे की हसी के साथ सबकुछ पहले जैसा हो जाए।
कुछ शौर अब भी हैं जिसको कभी जुबा न मिल पाई। कभी वक़्त के साथ मिलकर वक़्त की ख़ातिर वक़्त ने ही वक़्त को मात दे दी। कभी बैठकर अपनों और दोस्तों के साथ ठहाके लगाये थे तो कभी अपने आप से भी कोई बात नही की थी।
सफ़र ने शिखाया हैं की आख़री सफ़र अकेले ही तय करना हैं फ़िर फिक्र केसी? डर केसा? कभी मंज़र धुंधला जाये तो वक़्त होंसला बनकर खड़ा रहा हैं ।
अब इस नये साल में सब कुछ नया ही नही चाहिए। मेरे वो लोग जो वक़्त के पन्नों की कहानी बनकर मेरे जहन में जिन्दा हैं वो और कुछ दोस्त भी तो पुराने चाहिए। वक़्त के साथ ऐसे बहते रहना हैं की जैसे छाँव धुप से होकर गुजरती हैं।
कुछ आधे अधूरे सपने, कुछ ख्वाइशें को साथ लेकर आगे बढ़ जाना हैं। आज भी ना बटने वाला सफ़र एक और साल में फ़िर से बटने जा रहा हैं।
कुछ नये सपनों की ख्वाइशों के साथ पुराने को समेट कर आगे बढ़ जाये। वक़्त, हमे प्यार,दर्द, यादें, खुशियाँ, आँसु, और फ़नकार लिए फिर से एक नये दौर में ले आया। चलो, एकसाथ सफ़र जारी रखते हैं।
जब सफ़र ख़त्म हो तो सुकून होना चाहिए
ये आरजू ही नही दिल की दुआ होनी चाहिए।
- भूमि जोशी
ये आरजू ही नही दिल की दुआ होनी चाहिए।
- भूमि जोशी
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