में नही चाहती की तुम हारो,
तुम नही में दिल से चाहती हु की कोई भी इस जंग में ना हारे
लेकिन मुझे पता हैं की कौन बचेंगे इस लड़ाई में
कभी लगता हैं की ये लड़ाई हैं स्वयं की स्वयं से विरुद्ध
ये लड़ाई हैं अपनी ही आदतों से
ये लड़ाई हैं हमारी ही सोच से
ये लड़ाई हैं हमारे भीतर पल रहे वाइरस की
ये लड़ाई हैं देश को बचाने की
सब को लगता है की हम को कुछ नही होगा
कोरोना हमारा क्या उखाड़ लेगा
लेकिन कभी सोचा है....
ए वाइरस नही तुम्हें तुम्हारी आदतें ही वहाँ तक ले जाएगी,
वो वाइरस इतना स्वाभिमानी हैं की बिना बुलाये मेहमान नवाजी आपके वहाँ कभी नही करता।
घर पे रहना,
हाय, कैसे रहंगे ? ये सोच में डूबे हो?
लगता हैं की भूल गए हो की घर क्या होता हैं
बूढ़े मा - बाप के चहेरे की हसी क्या होती हैं
बच्चों की किलकारी क्या होती हैं
उन दीवालों को कभी ग़ौर से देखा हैं जिन पे तुम्हारी ही तसवीर टंगी रहती हैं?
पहचानते हो उस शख्श को ?
की भूल गए हो?
पिछले सोमवार को जो लाये थे किताबें आज भी वो मेज़ पर पड़ी इंतजार कर रही हैं सिर्फ़ तुम्हारा
अपने अंदर जाक कर तो देखो कहि बचपना उभर रहा हैं तुम्हारा
वो जो हररोज़ सुबह से लेकर शाम तक यहाँ वहाँ करती रहती,
सबकुछ अच्छे से संभाल लेती,
रात होते होते कितने टूटे सपने पकड़े रहती तुम्हारी बीवी को ध्यान से देखा हैं कभी
वक़्त ने तुम्हें वक़्त दिया हैं फ़िर से सबकुछ फ़िर से पा ने को।
में जानती हु की ऐसा नही हैं की तुम रुकना नही चाहते घरपर
मालूम हैं तुम पर कई सारे बोझ हैं
तुम तुम्हारी जिम्मेदारी से बंधे हो
तुम आदत से मजबूर हो
कोई तुम्हें रोक नही पाएगा और तुम रुकोगे नही
क्योंकि..
पिछले कई सालों से तुमने जिंदगी को रेस की तरह ही लिया हैं, जिया नही।
इस जंग में नही बच पाओगें
इस लिए नही को तुम्हें जितना हैं इसलिए की
दौड़ना तुम्हारी आदत हो चुकी हैं
मगर अफसोस
तुम्हें नही पता की
कब, क्यों और कहा रुकना हैं ।
~ भूमि जोशी
Wah
ReplyDeleteचलते रहने की आदतें !👌🏻
ReplyDeleteपढ़कर काफी अच्छा लगा बहोत खूब