वो आई जरूर,
कैसे और कहा से नही पता।
मौत हर किसी के जहन में जिन्दा हैं
उसका अपना ही गुस्सा बनकर।
वो गुस्सा कभी सोचने नही देता, ना अपने बारे में ना ही दुसरो के।
वो गुस्सा तुम्हें तुम से पहले अलग कर लेता हैं
फ़िर
तुम वो बोलने लगते हो जो तुम कभी बोलना ही नही चाहते थे
तुम वो कर जाते हो जिसको करने से तुमने ही किसी और को कईबार ये गलत हैं कह कर रोका था
तुम वो हर चीज़ कर जाते हो जो दरअसल तुम कभी करना ही नही चाहते
आज ही देखो क्या हो गया ??? क्या कर गये ??
बड़ी अजीब बात हैं,
कब कैसे और क्यो, वो तुम्हें भी नही पता।
अब वो रोती बिलखती औरत का क्या?
वो छोटे छोटे मासूम बच्चों का क्या?
ना सुबह हुए, ना दोपहर आई ना ही शाम ढली
अब तो सिर्फ़ जिंदगी में अंधेरी रात हैं और काले घने बादल।
तुम गुस्सा थे तो थूक देते, पर ए क्या,
एक निहत्थे पे वार!!
वो तुम्हारे सामने चैन की नींद सो गया हैं
और अब तुम जागना सारी जिंदगी उस नींद का बोझ लिए
क्योंकि
मौत सिर्फ़ किसी एक को नही मारती।
सोच ना जरूर, की क्या तुम ने उसे जलाया हैं
या
फ़िर अपने गुस्से को।
कहती हु ना की मौत हर एक के जहन में जिन्दा होती हैं।
~ भूमि जोशी
What a pity you described.... in such a lucid flow...must have witnessed true incident as it is narrated.
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