पगलैट: 'हा भी ना भी!'
आज भी हमारे आसपास कई ऐसे मसले हैं जिन पर हम बात नही करते। कही ना कही लगता हैं कि वो हमारा ही हिस्सा हैं या फिर हम ही उसके किरदार। सोचने लगो तो सोच से परे हैं क्योंकि सामने परंपरा और संस्कारों की खाई हैं। लोग आते हैं, बाते करते हैं और चले जाते हैं लेकिन पूछता कोई नही। बहुत कम लोग हैं जो जानते हैं कि आग कैसे बुजाई जाए वरना तो लोग हवा के लिए तो तैयार ही बैठे हैं।
बात करनी है फ़िल्म 'पगलैट' की। न जाने क्यो अच्छी लगी। न ज्यादा हाई हैं ना ही ज्यादा स्लो। शुरू से घिसी पिटी लगले वाली संध्या की कहानी आगे कई मोड़ से गुजरती हैं। फ़िल्म में विरोध प्रदर्शित किया हैं आक्रोश नही। हसाते हसाते कई ऐसी बात फ़िल्म मेकर हमारे सामने रखते हैं जिस पर हमारा ध्यान कभी ना गया हो। लगती तो बहुत ही सीधी बात पर होती नही।
इसके बारे में लिखने का मन इसलिए हुआ कि अभी तक हम लोग एक सोच के दायरे से निकल नही पाए। जब में फ़िल्म देख रही थी तब माँ ने पूछा कि क्या देख रही हो? मेने कहा पगलैट और कहानी सुनाई, वो दंग रह गई और कहा कि ऐसा भी भला हो शकता हैं क्या?
मुझे हसी आ रही थी। मेने कहा कि क्यों नही हो शकता? किसी को बिना देखे, जाने, समजे शादी हो शकती हैं या नही? तो फ़िर इस सच्चाई को स्वीकार करने में इतनी हैरानी क्यों? पता है कि दोनों की स्थिति अलग हैं पर फ़िर भी 'फ़क़ीर ऑफ जंगघीरा' की नुलिनी मुझे याद आ गई।
संध्या एक पढ़ी- लिख्खी काबिल लड़की हैं, जिसने एम.ए इंग्लिश तक पढ़ाई की हैं। संध्या का पति शादी के पांच ही महीने में मर जाता हैं। वो ना ही रो रही हैं और ना ही उसके पति आस्तिक के लिए तड़प रही हैं। सब लोग बाहर आस्तिक के लिए रो रहे हैं और उसके बारे में पूछ रहे हैं तब संध्या अपने कमरे में लेटी पोस्ट देख रही हैं। इस दुःख भरे दिनों में वो पेप्सी और गोलगप्पे खाना चाहती हैं। वो अपनी फ्रेंड, नाज़िया को कहती हैं की बचपन मे जब उसकी बिल्ली मरी थी तब जसे ज्यादा रोना आ रहा था। संध्या ने आस्तिक को कभी अपने करीब पाया ही नही क्योंकि इस शादी में प्यार था ही नही।
उसकी मिडल क्लास फेमेली सोच रही हैं कि संध्या को आस्तिक के ना होने का बहुत ही गहरा सदमा लगा है। बल्कि सच तो ये हैं कि संध्या नॉर्मल हैं। उसे उसके जाने का दुख नही है। वो दोनों सिर्फ़ अपनी अपनी जिमेदारिया निभा रहे थे एक - दूसरे का साथ नही।
देखा जाए तो घर मे सब लोग अस्तिक के जाने से दुःखी हैं इससे कई ज़्यादा अब वो लोग अपने शिर पर आई आर्थिक समस्या से कैसे जूझ पाएगे उस बात से ज़्यादा दुःखी और परेशान दिखाई देते हैं। इसी दौरान संध्या को आस्तिक के अफ़ेयर के बारे में पता चलता है। संध्या को आस्तिक की मौत से ज़्यादा इस सच्चाई का सदमा लगता हैं। वो भी अपनी सोसियल कंडीशनिंग के कारण उससे बाहर नही आ पाती।
वो जो फ़ोटो में हैं उससे मिलना चाहती हैं, जानना चाहती हैं। वो उससे मिलती हैं और कई सारे सवाल जो आस्तिक को पूछने चाहिए वो उससे पूछती हैं।
दशवीं की विधि के बाद जब आलोक अपनी माँ से कहता हैं कि अब भैया स्वर्ग पहोंच गए और गंगा मैया ने उनके सारे पाप मिटा दिए। तब संध्या गुस्से मे जो कहती हैं वो शायद फ़िल्म देखने वाले के चहरो पर हास्य ले आए लेकिन उससे व्यंग छलकता हैं, "गंगा मैया कैसे माफ़ कर शकती हैं? गंगा मैया से शादी की थी?"
संध्या के पास अपनी सोच हैं। उसके पास उसका अकेलापन हैं जो उसे भीतर से खाये जा रहा है और दूसरी और उसके अपने इरादे और उसको पूरा करनी की ज़िद उसके स्वभाव से झलक रही हैं। वो अपने आप की यहाँ इस घर मे अपने पति की तेरवी तक सँभाले हुए है। वो जानती हैं उसे क्या करना है। उसकी राह कौन सी हैं क्योंकि वो जानती हैं, ‘लड़कियों की सब फिक्र करते हैं, लेकिन लड़कियां क्या सोचती हैं, इसकी फिक्र कोई नहीं करता।’
पैसा बोलता हैं। आस्तिक के मरने पर संध्या को जब 50 लाख रुपए मिलने वाले थे तब रिश्तेदार तो ठीक है अपनों की नियत भी1 साफ़ होती दिखाई दी। संध्या की माँ जब संध्या को घर ले जाने की बात आई तो कहने लगी कि 'अब यही उसका घर हैं।' और वो ही माँ बाद में कहती हैं की, "अब यहाँ रुकने की कोई जरूरत नही है। पढ़ी लिखी हो, अपने पैरों पर खडी हो शकती हो।" आस्तिक के पिता लोन चुकाने के वास्ते ही सही, रिश्तेदार की बातों में आकर एजंट को घुस देने की कोशिश करता हैं। उसकी सास लोन को भरपाई करने कि खातिर अपनी ही बहु के पास रश्मि के बेटे के साथ विवाह का प्रस्ताव ले कर जाती है और वो भी तब जब उसके बेटे की तेरवी बाकी हैं। होटल खोलने के लिए लोन ना लेना पड़े इसलिए आदित्य अपने ही कज़िन की विधवा से शादी करने के लिए तैयार हैं। तो देखा जाए तो सब लोग अपनी कमजोरी को छूपाने और अपना ही फ़ायदा देखते हुए एक शब्द का सहारा लेते हैं और वो हैं कि 'इस बात में हम ओपन माइंडेड हैं"।
इस सब से गुजर कर संध्या जानती हैं कि अब वक़्त आ गया हैं अपने फ़ैसले खुद लेने का क्योंकि, ‘अपने फैसले खुद नहीं करेंगे न, तो कोई दूसरा करने लगेगा।
संध्या दूर जाना चाहती हैं क़ैद से बहुत दूर। वो सब ठीक करके घर से निकलती हैं। वो जानती हैं 50 लाख रुपए से कर्जा भरपाई हो शकता हैं अपनी जंदगी नही। वो अपनी उड़ान के लिए 50 लाख को भी ठुकरा शकती हैं। वो जिमेदारी लेने का वादा करती हैं पर अपनी आजादी के बदले नही। वो सबकुछ छोड़ कर चल पड़ती हैं अपने पंख फ़ैलाने, अपने सपनों को उड़ान देने और कहती हैं की ‘जब लड़की लोग को अक्ल आती है न, तो सब उन्हें पगलैट ही कहते हैं।’
क्य वाकई यही एक रास्ता होता हैं? हरबार अपनी आज़ादी की कीमत घर छोड़ कर ही चुकानी होगी? अब समज में आ रहा हैं जो समाज के दायरे में नही हैं वो पगलैट हैं।
हर बार अपनी सोच से, अपनी भावनासे, अपने मन और क्षमता से निर्यण लेने वाली, अपने आप से प्रमाणिक रहने वाली हर स्त्री को समाज में पगलैट कहा गया हैं, कहा जाता हैं और आगे भी कहा जाएगा।
Samsung's Titanium Watch - The Official Samsung Titanium Watch
ReplyDeleteThe Samsung Galaxy buy metal online S titanium mens wedding bands Premium model is the first of three premium models in the race tech titanium line of watches designed to oakley titanium glasses cater titanium bike frame to the needs of a professional customer. The