गोदान
गोदान प्रेमचंद का आखरी और सर्वश्रेष्ठ उपन्यास हैं। गोदान वो कथा हैं जिसमें भारतीय किसान का संपूर्ण जीवन निरूपण किया गया हैं । होरी और धनिया दोनों पात्र भारतीय किसान का प्रतिनिधित्व के रूप में हमारे सामने खड़े हैं। होरी और धनिया की आशा, निराशा,वेदना, बेबसी, डर, और धर्मभीरुता वाचक को जनजोड़ को रख देती हैं । कैसे किसान कभी भी अपनी जिंदगी में खड़ा नही हो शकता वो निरूपण लेखक प्रेमचन्दने हूबहु चित्रण किया है। वो जिस कर्ज़ में पैदा होता हैं उसी कर्ज़ में वो अपनी सारी जिंदगी गुलाम बनकर गुजार देता है ।
गोदान, वास्तव में, २०वीं शताब्दी की तीसरी और चौथी दशाब्दियों के भारत का ऐसा सजीव चित्र है, जैसा हमें अन्यत्र मिलना दुर्लभ है।गोदान ग्राम्यजीवन और कृषि संस्कृतिका महाकाव्य हैं । इसमें प्रगतिवाद, गांधीवाद और मार्क्सवाद का पूर्ण परिप्रेक्ष्य में चित्रण हुआ हैं ।(Wikipedia)
किसान होना अपने आप में एक अभिशाप बन चूका हैं वो मुद्रण यहाँ देखने को मिलता हैं । जो लोग दो वक़्त की रोटी नहीं जुट्टा पाते वो किसी और चीजो को के बारे में कैसे सोच शकते है। आँगन में गाय होना ही उस वक़्त भारतीय समाज में प्रतिष्ठित माना जाता था और उसे सीधे धर्म से जोड़ा जाता था । गाय का होना, गौ सेवा करने का मतलब सीधा मौक्ष को पा लेना था। इस कथा की शरुआत भी होरी की गाय ख़रीद ने की इच्छा से होती हैं और कहानी ख़त्म भी उसी अधूरी इच्छा पर हो जाती हैं । इस बिच कई किरदार अपने रंगो को बदलते हैं जैसे गिर्गिड़ अपने रंग परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता हैं ।
गरीब होरी, ऐंग्री यंग गोबर, फिलॉसफर & आडीयालिस्टिक मेहता,नकाब पहरे रॉयसाहेब, पत्रकार ओमकरनाथ, मिस मालती, मिस्टर खन्ना, दातादिन्, मातादीन, पटलेश्वरी, धनिया, जुनिया, सोना, रूपा, सिलिया, सारे किरदार सच्चे जीवन की प्रतीति कराते हैं ।
कैसे पैसो की आड़ में उसकी गरीबी का लाभ ले के ये लोग अपना काम करवाते हैं और औरतों को बेईज्जत करते हैं । मानवीय विरूद्ध का व्यवहार उनके साथ किया जा रहा हैं और वो लोग निरुपाय, विचारशून्य नतमस्तक होकर उनको मायबाप, मालिक बनाकर सबकुछ सहन किये जा रहे हैं। मातादीन का धर्म सिलिया के साथ सोने में भ्र्ष्ट नही होता, लेकिन जो वो उसके हाथ से बना खाना खा ले तो उसे प्रायश्चित करना होगा । ये कोनसा धर्म हैं ? जहाँ एक औरत अपमानित होती रहे ? धर्म और पैसो की आड़ में वो लूटते रहते हैं ।
यहाँ मुझे बलराम हलवाई (The White Tiger) की याद आती हैं जो देश को दो हिस्से में विभाजित करता हैं । 'इंडिया इन डार्क'' & इंडिया इन लाइट' उसी तरह यहाँ भी हम दो एकदूसरे से विपरीत दृश्य देख शकते हैं । एक और अपनी जिंदगी को बचाने के लिए सुबह से शाम तक मेहनत करने के बावजूद भी कुछ नही पाता । उसके हिस्से में आता हैं तो सिर्फ भूख, पीड़ा, आँसु, और गाली । जहाँ दूसरी और लोग पैसे पानी की तरह बहा रहे हैं. अनपे मोजशोख में , बिरादरी मे मान रखने के लिये। अपना वैभव दिखाने के लिए। एक ही देश में कितनी विभिन्न परिस्थितिया का दर्शन होता हैं मानो कोई और देश की बात हो रही हो । यहाँ भी जमींदार, मिल मालिक, पत्रसंपादक, अध्यापक, पेशेवर वकील और डाक्टर, राजनीतिक नेता और राजकर्मचारी सब मिलकर किसान का शोषण कर रहे हैं. जेसे बलराम कहता हैं "Each professions go under the jaw of evil" (The White Tiger)
प्रेमचंद ने अपने उपन्यास में जीवन का नीचोड़ रख दिया हैं । प्रेम, पीड़ा, वेदना, अनुभव, विद्रोह, सौम्यता, कटाक्ष, घृणा, सभी भावो को एकसाथ कहानी में दिया हैं जिसे कोइ भी पी कर तृप्त हो शकता हैं और साथ ही उसकी ज्वाला मनमें सुलगती रहती हैं ।
ऐसा प्रतीत होता हैं की लेखक प्रेमचन्द ने समाज में परवर्तित तमाम गलत के खिलाफ़ आवाज उठाई हैं और उसका सबसे बड़ा प्रमाण कहानी का किरदार धनिया हैं । चाहे जैसे भी हो जाए धनिया झुकने वालो में से नही हैं। ये सच हैं की धनिया एक स्री होने के कारण नही जीत पाती लेकिन वो किसी भी सिर्फ़ कहलाने वाले रुधिचुस्तधर्म, बिरादरी, और मर्यादा को नही मानती। उसी सोच के कारण वो जुनिया और सिलिया की रक्षा कर पाई । यह एक किसान के अविरत संघर्ष की कथा हैं। सारी जिंदगी मेहनत मजदूरी करके भी वो अपना सपना पूरा नही कर पाता। उसके अंतिम सासों में भी वो ही मनमस्तिक में घूम रहा हैं । होरी इतने संघर्ष के बाद भी अपनी मर्यादा नही बचा पाता जिसके लिए उसने अपना पूरा जीवन दाव पर लगाया था ।
"और कई आवाजें आईं - हाँ, गोदान करा दो, अब यही समय है।
धनिया यंत्र की भाँति उठी, आज जो सुतली बेची थी, उसके बीस आने पैसे लाई और पति के ठंडे हाथ में रख कर सामने खड़े मातादीन से बोली - महराज, घर में न गाय है, न बछिया, न पैसा। यही पैसे हैं,यही इनका गोदान हैं । "
गोदान प्रेमचंद का आखरी और सर्वश्रेष्ठ उपन्यास हैं। गोदान वो कथा हैं जिसमें भारतीय किसान का संपूर्ण जीवन निरूपण किया गया हैं । होरी और धनिया दोनों पात्र भारतीय किसान का प्रतिनिधित्व के रूप में हमारे सामने खड़े हैं। होरी और धनिया की आशा, निराशा,वेदना, बेबसी, डर, और धर्मभीरुता वाचक को जनजोड़ को रख देती हैं । कैसे किसान कभी भी अपनी जिंदगी में खड़ा नही हो शकता वो निरूपण लेखक प्रेमचन्दने हूबहु चित्रण किया है। वो जिस कर्ज़ में पैदा होता हैं उसी कर्ज़ में वो अपनी सारी जिंदगी गुलाम बनकर गुजार देता है ।
गोदान, वास्तव में, २०वीं शताब्दी की तीसरी और चौथी दशाब्दियों के भारत का ऐसा सजीव चित्र है, जैसा हमें अन्यत्र मिलना दुर्लभ है।गोदान ग्राम्यजीवन और कृषि संस्कृतिका महाकाव्य हैं । इसमें प्रगतिवाद, गांधीवाद और मार्क्सवाद का पूर्ण परिप्रेक्ष्य में चित्रण हुआ हैं ।(Wikipedia)
किसान होना अपने आप में एक अभिशाप बन चूका हैं वो मुद्रण यहाँ देखने को मिलता हैं । जो लोग दो वक़्त की रोटी नहीं जुट्टा पाते वो किसी और चीजो को के बारे में कैसे सोच शकते है। आँगन में गाय होना ही उस वक़्त भारतीय समाज में प्रतिष्ठित माना जाता था और उसे सीधे धर्म से जोड़ा जाता था । गाय का होना, गौ सेवा करने का मतलब सीधा मौक्ष को पा लेना था। इस कथा की शरुआत भी होरी की गाय ख़रीद ने की इच्छा से होती हैं और कहानी ख़त्म भी उसी अधूरी इच्छा पर हो जाती हैं । इस बिच कई किरदार अपने रंगो को बदलते हैं जैसे गिर्गिड़ अपने रंग परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता हैं ।
गरीब होरी, ऐंग्री यंग गोबर, फिलॉसफर & आडीयालिस्टिक मेहता,नकाब पहरे रॉयसाहेब, पत्रकार ओमकरनाथ, मिस मालती, मिस्टर खन्ना, दातादिन्, मातादीन, पटलेश्वरी, धनिया, जुनिया, सोना, रूपा, सिलिया, सारे किरदार सच्चे जीवन की प्रतीति कराते हैं ।
कैसे पैसो की आड़ में उसकी गरीबी का लाभ ले के ये लोग अपना काम करवाते हैं और औरतों को बेईज्जत करते हैं । मानवीय विरूद्ध का व्यवहार उनके साथ किया जा रहा हैं और वो लोग निरुपाय, विचारशून्य नतमस्तक होकर उनको मायबाप, मालिक बनाकर सबकुछ सहन किये जा रहे हैं। मातादीन का धर्म सिलिया के साथ सोने में भ्र्ष्ट नही होता, लेकिन जो वो उसके हाथ से बना खाना खा ले तो उसे प्रायश्चित करना होगा । ये कोनसा धर्म हैं ? जहाँ एक औरत अपमानित होती रहे ? धर्म और पैसो की आड़ में वो लूटते रहते हैं ।
यहाँ मुझे बलराम हलवाई (The White Tiger) की याद आती हैं जो देश को दो हिस्से में विभाजित करता हैं । 'इंडिया इन डार्क'' & इंडिया इन लाइट' उसी तरह यहाँ भी हम दो एकदूसरे से विपरीत दृश्य देख शकते हैं । एक और अपनी जिंदगी को बचाने के लिए सुबह से शाम तक मेहनत करने के बावजूद भी कुछ नही पाता । उसके हिस्से में आता हैं तो सिर्फ भूख, पीड़ा, आँसु, और गाली । जहाँ दूसरी और लोग पैसे पानी की तरह बहा रहे हैं. अनपे मोजशोख में , बिरादरी मे मान रखने के लिये। अपना वैभव दिखाने के लिए। एक ही देश में कितनी विभिन्न परिस्थितिया का दर्शन होता हैं मानो कोई और देश की बात हो रही हो । यहाँ भी जमींदार, मिल मालिक, पत्रसंपादक, अध्यापक, पेशेवर वकील और डाक्टर, राजनीतिक नेता और राजकर्मचारी सब मिलकर किसान का शोषण कर रहे हैं. जेसे बलराम कहता हैं "Each professions go under the jaw of evil" (The White Tiger)
प्रेमचंद ने अपने उपन्यास में जीवन का नीचोड़ रख दिया हैं । प्रेम, पीड़ा, वेदना, अनुभव, विद्रोह, सौम्यता, कटाक्ष, घृणा, सभी भावो को एकसाथ कहानी में दिया हैं जिसे कोइ भी पी कर तृप्त हो शकता हैं और साथ ही उसकी ज्वाला मनमें सुलगती रहती हैं ।
ऐसा प्रतीत होता हैं की लेखक प्रेमचन्द ने समाज में परवर्तित तमाम गलत के खिलाफ़ आवाज उठाई हैं और उसका सबसे बड़ा प्रमाण कहानी का किरदार धनिया हैं । चाहे जैसे भी हो जाए धनिया झुकने वालो में से नही हैं। ये सच हैं की धनिया एक स्री होने के कारण नही जीत पाती लेकिन वो किसी भी सिर्फ़ कहलाने वाले रुधिचुस्तधर्म, बिरादरी, और मर्यादा को नही मानती। उसी सोच के कारण वो जुनिया और सिलिया की रक्षा कर पाई । यह एक किसान के अविरत संघर्ष की कथा हैं। सारी जिंदगी मेहनत मजदूरी करके भी वो अपना सपना पूरा नही कर पाता। उसके अंतिम सासों में भी वो ही मनमस्तिक में घूम रहा हैं । होरी इतने संघर्ष के बाद भी अपनी मर्यादा नही बचा पाता जिसके लिए उसने अपना पूरा जीवन दाव पर लगाया था ।
"और कई आवाजें आईं - हाँ, गोदान करा दो, अब यही समय है।
धनिया यंत्र की भाँति उठी, आज जो सुतली बेची थी, उसके बीस आने पैसे लाई और पति के ठंडे हाथ में रख कर सामने खड़े मातादीन से बोली - महराज, घर में न गाय है, न बछिया, न पैसा। यही पैसे हैं,यही इनका गोदान हैं । "
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